"श्वेता, हिनका सं मिलू... अपन दरभंगे के छथिन्ह।" ई कहि राजीव जी विस्तार सं हमर परिचय देबय लगलाह। हम दूनू हाथ जोड़ि नमस्कार क' श्वेता के जन्मदिनक शुभकामना देलौं आ अपना संग लाएल गिफ्ट हुनका थमा देलौं।
राजीव जी हमरा दूनू के छोड़ि खाना-पीना के तैयारी देखय चलि गेलाह। बर्थडे विश के बाद आब की गप कएल जाए- दूनू गोटे के जेना किछु फुराइए नै रहल छल। बस एक-दोसर के देखैत, मुस्कुरा रहल छलौं। मन मे होइत रहल जे ई कहिएन्हि तs ओ कहिएन्हि, मुदा शब्द गुम भ' गेल। जिनका सं मिलए लेल ओतेक तैयारी- सामने अएलि त' एकदम सं बोलती बंद!
जेना-जेना लोक सभ के हमरा बारे मे पता चलय लगलन्हि, खुसुर-पुसुर शुरू भ' गेल। सभ गोटे के नजर हमरा आ श्वेता पर। मुदा हम त' जेना ओहि ठाम के लोक, देश-दुनिया सं बेखबर, बस श्वेता मे गुम। ओहि बीच श्वेता के नजर शेखर पर पड़ल। "हाए शेखर, केहन छी अहाँ? की सभ भ' रहल अछि?" शेखर सं गप करैत देख, राजीव जी हमरा अपन आओर रिश्तेदार, गाम-घर के लोक सभ सं मिलाबय लगलाह।
लोक सभ सं परिचय होएत रहल, गप्प-सप्प चलैत रहल। मुदा बीच-बीच मे नजर अपने-आप श्वेता दिस चलि जाइत छल। आ बुझाइत रहल जे ओहो कनखी सं बीच-बीच मे हमरा देखि रहल छथिन्ह। श्वेता के सहेली सभ सं सेहो गप भेल-काम-काज, पढ़ाइ-लिखाइ, दिल्ली के जिनगी, आओर दस तरहक बात।
हमरा त' लागल जेना एहि बर्थडे पार्टी मे श्वेता सं बेसि चर्चा में हमहीं आबि गेल छी। ई हमर भ्रमो भ' सकैत अछि, किएक त' पार्टी में आएल लोक सभ हुनकर जान-पहचान के छलन्हि। एकटा हमहीं टा अनजान। "कोन गाम के छी?" "बाबूजी के नाम?" "की काज करैत छी?"—दस तरहक सवाल। मुदा हमर ध्यान त' श्वेता पर टिकल।
शेखर सं एकटा बात पूछय के बहाने फेर श्वेता के पास पहुंचलौं आ शेखर के दोसर लोक सं बात करय लेल भेज देलौं। शेखर गेलाह त' श्वेता के दू-चारि संगी सभ आबि गेलीह। धीरे-धीरे हमहुं खुलय लगलौं—हंसी-मजाक आ खुलिsक गप सेहो होए लागल।
हॉबी, खनाए-पीनाए, घुमनाए-फिरनाए, पढ़ाइ-लिखाइ, काम-काज- नै जाने कोन-कोन विषय पर गप भेल। फोन नंबर, ईमेल के आदान-प्रदान सेहो भ' गेल।
एतबा मे राजीव जी आबि श्वेता के कहलाह—"गप्पे होएत रहतै कि? हिनका किछु खिएबो-पिएबो करबहुं?"
ई सुनि श्वेता हमरा डिनर एरिया दिस ल' गेलीह। खाए-पिए के नीक इंतजाम। वेज-नॉनवेज दूनू, आ माछ त' खास मिथिलाक लोक लेल। रसगुल्ला आ मिठाई सेहो।
खाना खा क' जखन गीत-गजल के कार्यक्रम दिस बढ़लौं, त' एकटा बच्चा आबि श्वेता के कहलक—"अल्का दीदी आबि गेलीह।" ई सुनिते श्वेता "एक्सक्यूज मी" कहि दीदी सं मिलय लेल डिनर एरिया सं मेन एरिया दिस चलि गेलीह।
हमहुं दोसर लड़की सभ सं गप करैत धीरे-धीरे ओतहि पहुंचलौं। श्वेता अपन दीदी के गोर लागि गला मिलि रहल छलीह। गला मिलैत अल्का जीक नजर हमरा पर पड़लन्हि। ओ श्वेता के अलग करैत, हमरा दिस दौड़ि क' आबि कसि क भरि पांज पकड़ि चिहकलखिन्ह—"हितेन, तुम!"
ई देखिते सभ लोक सन्न। पार्टी में एकदम सन्नाटा छा गेल।
राजीव जी हमरा दूनू के छोड़ि खाना-पीना के तैयारी देखय चलि गेलाह। बर्थडे विश के बाद आब की गप कएल जाए- दूनू गोटे के जेना किछु फुराइए नै रहल छल। बस एक-दोसर के देखैत, मुस्कुरा रहल छलौं। मन मे होइत रहल जे ई कहिएन्हि तs ओ कहिएन्हि, मुदा शब्द गुम भ' गेल। जिनका सं मिलए लेल ओतेक तैयारी- सामने अएलि त' एकदम सं बोलती बंद!
जेना-जेना लोक सभ के हमरा बारे मे पता चलय लगलन्हि, खुसुर-पुसुर शुरू भ' गेल। सभ गोटे के नजर हमरा आ श्वेता पर। मुदा हम त' जेना ओहि ठाम के लोक, देश-दुनिया सं बेखबर, बस श्वेता मे गुम। ओहि बीच श्वेता के नजर शेखर पर पड़ल। "हाए शेखर, केहन छी अहाँ? की सभ भ' रहल अछि?" शेखर सं गप करैत देख, राजीव जी हमरा अपन आओर रिश्तेदार, गाम-घर के लोक सभ सं मिलाबय लगलाह।
लोक सभ सं परिचय होएत रहल, गप्प-सप्प चलैत रहल। मुदा बीच-बीच मे नजर अपने-आप श्वेता दिस चलि जाइत छल। आ बुझाइत रहल जे ओहो कनखी सं बीच-बीच मे हमरा देखि रहल छथिन्ह। श्वेता के सहेली सभ सं सेहो गप भेल-काम-काज, पढ़ाइ-लिखाइ, दिल्ली के जिनगी, आओर दस तरहक बात।
हमरा त' लागल जेना एहि बर्थडे पार्टी मे श्वेता सं बेसि चर्चा में हमहीं आबि गेल छी। ई हमर भ्रमो भ' सकैत अछि, किएक त' पार्टी में आएल लोक सभ हुनकर जान-पहचान के छलन्हि। एकटा हमहीं टा अनजान। "कोन गाम के छी?" "बाबूजी के नाम?" "की काज करैत छी?"—दस तरहक सवाल। मुदा हमर ध्यान त' श्वेता पर टिकल।
शेखर सं एकटा बात पूछय के बहाने फेर श्वेता के पास पहुंचलौं आ शेखर के दोसर लोक सं बात करय लेल भेज देलौं। शेखर गेलाह त' श्वेता के दू-चारि संगी सभ आबि गेलीह। धीरे-धीरे हमहुं खुलय लगलौं—हंसी-मजाक आ खुलिsक गप सेहो होए लागल।
हॉबी, खनाए-पीनाए, घुमनाए-फिरनाए, पढ़ाइ-लिखाइ, काम-काज- नै जाने कोन-कोन विषय पर गप भेल। फोन नंबर, ईमेल के आदान-प्रदान सेहो भ' गेल।
एतबा मे राजीव जी आबि श्वेता के कहलाह—"गप्पे होएत रहतै कि? हिनका किछु खिएबो-पिएबो करबहुं?"
ई सुनि श्वेता हमरा डिनर एरिया दिस ल' गेलीह। खाए-पिए के नीक इंतजाम। वेज-नॉनवेज दूनू, आ माछ त' खास मिथिलाक लोक लेल। रसगुल्ला आ मिठाई सेहो।
खाना खा क' जखन गीत-गजल के कार्यक्रम दिस बढ़लौं, त' एकटा बच्चा आबि श्वेता के कहलक—"अल्का दीदी आबि गेलीह।" ई सुनिते श्वेता "एक्सक्यूज मी" कहि दीदी सं मिलय लेल डिनर एरिया सं मेन एरिया दिस चलि गेलीह।
हमहुं दोसर लड़की सभ सं गप करैत धीरे-धीरे ओतहि पहुंचलौं। श्वेता अपन दीदी के गोर लागि गला मिलि रहल छलीह। गला मिलैत अल्का जीक नजर हमरा पर पड़लन्हि। ओ श्वेता के अलग करैत, हमरा दिस दौड़ि क' आबि कसि क भरि पांज पकड़ि चिहकलखिन्ह—"हितेन, तुम!"
ई देखिते सभ लोक सन्न। पार्टी में एकदम सन्नाटा छा गेल।
आओर पढ़ए लेल लिंक क्लिक करु-
Kahani Dumdar ba...
जवाब देंहटाएंhasan.roohani@gmail.com
Kya bat hai sir ji kya twist diya hai kahani mai....Woh bhi romantic...Wah wah wah...Maza aya gaya padh kar...!!!
जवाब देंहटाएंNoor Khan
Dhanyawad Hasan aur Noor Bhai...
जवाब देंहटाएंvisualisation or presentation k jawab nhn...
जवाब देंहटाएंHasan Jawed
Nik lagal....
जवाब देंहटाएंKumar Kali Bhushan
Mumbai-Keoti