बाबूजी सं गप भेलाक बाद ओ किछु शांत भ' गेलाह, मुदा मां के बेचैनी कम नहि भेलन्हि। ओ बार-बार बाबूजी के टोकैत रहलीह- "अहां त' एकरा एकदम हल्का सं लेने छियै। कनि सीरियस भ' क' सोचिऔ। कनिओ ध्यान नहि द' रहल छी, एकदम सं अनठिएने छियै।"
मां के चिंता दिन-ब-दिन बढ़ैत जा रहल छल। ओ कहैत रहलीह—"सभ किछु अपन समय पर नीक लगै छै। अखन नै विआह करबन्हि त' कहिया करबन्हि? बूढ़ा जाएत तखन करबन्हि? बौआ केर संग तुरिया के सभ लड़का सभके घर बसि गेल छैनि, नेना-भुटका सेहो भ' गेल छैनि।"
"नहि होए छै त' अहां खुद दू दिन लेल दिल्ली चलि जाउ। जाउ, नीक सं बात क' लिअ। नहि त' बौआ के बुला लिअ। काम-काज नीक सं चलिए रहल छनि...फेर कोन दिक्कत छनि?"
"अहां बौआ के दोस्त सभ सं सेहो किएक नै बात करय छिएन्हि? अखन विआह करय के उमर छनि। शोभा-सुन्दर के सेहो एकटा समय होए छै।"
आब त' एहन भ' गेल जे मां दिन भरि मे चारि-पांच बेर बाबूजी के सामने एहि बात के छोड़ि दैत छलीह। बाबूजी चुपचाप सुनैत, मुदा भीतर-भीतर ओहो परेशान भ' उठलाह।
संयोग सं एहि बीच मामा जी सेहो घुमैत-फिरैत गाम पहुंचि गेलाह। खाना खाए काल मां हुनका सामने सेहो एकर जिक्र क' देलखिन्ह। दिल्ली वाला गप सुनला के बाद मामा जी के चुप नहि रहल गेलन्हि।
ओ अपन ठेठ अंदाज में कहलखिन्ह- "बौआ के त' हमहीं वीरेन्द्र बाबू के बेटी के बारे मे बतौने छलियै। वीरेन्द्र बाबू के बेटी दिल्ली मे नीक पोस्ट पर काज करय छथिन्ह, सुन्दर-सुशील सेहो छथिन्ह। बहुत नीक कथा अछि ई।"
ई सुनते बाबूजी भड़कि गेलाह। मामाजी पर खिसिआइत कहलखिन्ह-"त ई सभ अहां के लगाएल अछि! बौआ के बताबए सं पहिने हमरा बता देने रहितौं त' की भ' जाइत? अगर नीक कथा अछि, लड़की नीक अछि आओर बौआ के पसंद छनि त' फेर दिक्कत की अछि? बौआ के जे पसंद, से हमर सभक पसंद। आ भगवान के शुक्र अछि जे कथा अपने जाति-बिरादरी मे अछि। नै त' बाहर निकलि गेल बच्चा सभ पर कोनो भरोस नै। अगर ओम्हरे खोजि क' कोनो सं क' लेत त' की करबय?"
मां के त' जेना मनक मुराद पूरा भ' गेल। मामाजी पर प्रेशर बनबैत कहलीह- "अहां किछु दिन के लेल दिल्ली चलि जाउ आओर बौआ के मन के थाह लिअ कि एहि कथा पर हुनकर की विचार छनि।"
मामाजी हां में हां मिलबैत मुस्कुरा क' कहलखिन्ह- "अहां सभ बेकारे परेशान होए छी। हम काल्हिए जा क' रिजर्वेशन करा लैत छी। वीरेन्द्र बाबू के सुपुत्र सेहो रहय छथिन्ह, ओहिठाम हम हुनका सं सेहो भेंट क' लेब।"
"आओर वीरेन्द्र बाबू त' छोटका पाहुन लालबाबू (छोटा बाबू) के गाढ़ संगी छथि। किएक नहि हुनका सं गप करय छियैन। दू दिन के लेल छुट्टी ल' क' चलि अएताह आओर वीरेन्द्र बाबू सं भेंट क' लेथिन्ह।"
मामाजी के आश्वासन के बाद मां के चेहरा पर किछु राहत के भाव देखाए लगल। ओ छोटा बाबू के सेहो फोन क' क' दू दिन के छुट्टी ल' गाम आबय के फरमान सुना देलीह।
एहन सभ परिवार मे होएत अछि। जखन तक पढ़ैत रहू—त' कहिया नौकरी होएत, नौकरी भेल त' कत' नीक कनिआ मिलत, शादी भ' गेल त' कहिया पोता-पोती के मुंह देखब। आ ई सभ होएत रहैत अछि त' जी जुड़ाएत रहैत अछि।
ओम्हर मामाजी दिल्ली आबय के तैयारी मे जुटि गेलाह। एम्हर हम अपन गुनधुन में डूबल- श्वेता हमरा बारे मे की सोचय होएतीह...अल्का के की हाल होएतन्हि?
अल्का त' हमरा बारे मे सभ जानए छथीह, मुदा श्वेता त' किछु खास नहि जानए छथीह। की धारणा बनि गेल होएतन्हि हमरा बारे मे? की सोचय होतीह?
दिमाग में इहे सभ घुमि रहल छल, जे अचानक फोन घनघनाए लागल। स्क्रीन पर नवका नंबर देखलौं। बात करय पर पता चलल जे अल्का के एहिठाम वाला नवका नंबर अछि। जेहिआ तक इंडिया मे रहतीह, तेहिआ तक एहि नंबर पर गप होएत।
ओ हमरा सं किछु गप करय चाहय छलीह, मिलय चाहय छलीह। तय भेल जे काल्हि सीपी के मैकडोनाल्ड मे भेंट होएत। आब देखिऔ, काल्हि की होएत अछि?
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e aha ek ta k part bhej k humra sab ke utsukta badha dai chi hamra hoye je sab ta hum ekai din padhi li chalu intezar karab
जवाब देंहटाएंhahahaha....shukriya Amit jee.
जवाब देंहटाएंbahut nik lagal
जवाब देंहटाएंbahut nik lagal
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