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हमर विआह-10

जकर डर छल, सेहे भेल। पार्टी मे आएल किछु महिला के लेल त' जेना मुंह मांगल मुराद पूरा भ' गेल। गाम-घर के माए-बहिन सभ के जखन शहरक कोनो मसाला मिलि जाए छनि, त' ओकरा चटकारा ल' क' सुनाबए मे कोनो कसर नहि छोड़ै छथिन्ह।

पार्टी खत्म भेल, मुदा कानाफूसी शुरू भ' गेल। मामला दिल्ली सं वाया रिश्तेदारी गाम तक पहुंचि गेल। सभ ठाम गप के केंद्र बनि गेल अल्का के हमरा सं चिपैट जनाए।

अगर ई चिपटनाए कॉलेज मे भेल रहैत, त' आम बात रहैत। मुदा मिथिलाक समाज मे, गाम-घर के लोक के बीच, ओहो मे एक विआहल महिला के—ई बात सभक लेल हजम करब कठिन छल।

एक सं दोसरा, दोसरा सं तेसरा—बात फैलैत-फैलैत हमर गाम तक पहुंचि गेल। मां-बाबूजी के कानो मे पड़ि गेल। पंडित जी के कान मे सेहो।

मां-बाबूजी जतबा चिंतित, पंडितजी ओतबा उत्साहित। ओ सीधा हमर घर पहुंचि गेलाह, आ अपन पक्ष राखए लगलाह—हमरा प्रति लोक के भड़काबय के जतेक कोशिश होएत अछि, सब करय लगलाह।

मुदा बाबूजी संयमित स्वर मे पंडित जी से कहलखिन्ह- "एक त' हमर बेटा चिपटल नहि, दोसर ओ लड़की विआहल छथीह, नीक परिवार के छथीह, आओर दिल्ली मे पढ़ि-लिखि क' अमेरिका मे रहय छथीह। जतए गला मिलनाए साधारण बात छी। दूनू मे जान-पहचान होएतन्हि, ओतेक दिन बाद मिलल होएथिन्ह त' गला मिल लेने होएथिन्ह। एहि मे बेजाए की अछि? की हम-अहां गला नहि मिलैत छी?"

"फेर जखन हुनकर परिवार, पति, भाई, बहिन के कोनो आपत्ति नहि, त' अहां के किएक अपसिआत लगैत अछि?"
 

पंडित जी निरुत्तर भ' घर लौटि गेलाह। मुदा बाबूजीक मन फेर हमरा पर अटकि गेलन्हि।

ओ तुरंत हमरा फोन कएलाह। पहिने त' इधर-उधर के बात—केहन छी, काज केहन चलि रहल अछि, कोनो दिक्कत त' नहि? कहिया गाम आबि रहल छी?

मुदा ओ जे पूछय चाहए छलखिन्ह, से सीधे कहि नहि पाबि रहल छलखिन्ह। बड्ड देर तक इधर-उधर के बात करैत रहलाह। आखिर मे शादी के गप पर आबि गेलाह। मुदा सीधा नहि, घुमाइत-फिराइत पुछलाह—"छोटका बाबूजीक संगी वीरेंद्र बाबूजीक बेटी दिल्ली मे काज करय छथीह। एकटा बेटी अमेरिका मे विआहल छथीह, बेटा दिल्ली मे काज करय छथिन्ह। अहां के त' भेटल होताह दिल्ली मे? कि कोनो भेंट-मुलाकात अछि कि नै?"

हम एकदम सं घिर गेल छलहुं। झूठ बाजब संभव नहि, आ सच छुपाएब कठिन। अंत मे एकहि टा रास्ता बचि गेल जे सभ किछु साफ-साफ बता देल जाए।

हम कहलिए—"हां, जानए छी। पिछला दिन हुनकर छोट बहिन के जन्मदिन पार्टी मे गेलो छलहुं। ओहि मे बड़की बहिन सेहो आएल छलीह। संयोग एहन जे हुनकर बड़की बहिन कॉलेज मे हमर संगी छलीह। हम नीक जकां जानए छी हुनका। बहुत नीक लोक छथिन्ह, परिवार सेहो नीक छनि।"

हम जे सभ ओहि समय फुराएल, बाबूजी के बता देलिएन्हि। ओकर बाद बाबूजी के मन शांत भेलन्हि, आ हमर मन सेहो हल्का भेल।

पार्टी के बाद मन ओहि घटना पर अटकल छल। ध्यान घुमि-फिरि क' ओहि पर ठमैकि जाए छल। बाबूजी सं गप भेलाक बाद काफी हल्का आ सहज महसूस करय लगलौं, जेना सीना पर पड़ल बड़का भार हटि गेल हो।

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8 टिप्‍पणियां:

  1. bahut badhiya aiche aaga likhait rahab intezar rahaiya aha k kissa ke

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  2. हितेंद्र जी प्रणाम,
    बहुत नीक, अगला कड़ी क इंतजार क रहल छी |

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  3. hum bahut besubri sa agla kadi ke intjar mai chhi jaldi bheju
    jay mithila

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  4. अपना मिथिला आर मैथिलि के उत्थानक लेल कैल जा रहल ई प्रयास सराहनीय अइछ। हम त जगत जननी माँ जानकी से हेल्लो मिथिला के उत्तरोतर प्रगति के कामना करैत छि।

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