उत्तर मे छैक उमकी उठल, दच्छिन मे हिलकोर।
पश्चिम मे पपियाहक तांडव, पूब तकै छी भोर॥
पूब तकै छी भोर, मुदा बटतक्की अछि लागल।
राति जेना बनि गेल अहद्दी, हम छी बनल अभागल॥
अन्हार बढ़ल, छी कतय नुकायल दिनकर-दीनानाथ।
प्रकाश पसारब छोडि कतय, तकै छी कोन-कोन लाथ॥
तकै छी कोन-कोन लाथ, जगत मे पसरल हाहाकार।
निशाचरक अछि तांडव बढ़ल, असह्य भेल प्रहार॥
डुमल बाइढ सं अयाचिक बारी, उपजत कतय साग।
पेट भरब भेल मोश्किल, पहिरब की टोपी-पाग॥
पहिरब की टोपी पाग , आगि लागल अछि सउँसे हाट।
कप्पार पकडि कय कानय जन-गण, खा उपेक्षाक चाट॥
रामक धरती पर शान सं, चलबइए रावण राज ।
सता संत कें ठिठियाइत कनिको , लगैछ ने ककरो लाज ॥
लगैछ ने ककरो लाज, कतय सुतल छी रघुबीर ।
की ध्वंश भेल अछि धनुष, आ बिझा गेल अछि तीर ॥
प्राण पियासल आतंकीक भय सं, लोकक अछि उपरे दम।
हाट, बजार वा टीशन सगरो, फुटैछ फटक्का बम॥
फुटैछ फटक्का बम , तें जिनगीक ने कोनो ठीक।
जनता भेल बेहाल मुदा , सरकारक ने डोलैछ टीक॥
अजगुत लगैछ देखि चहुँदिस , जग-जमानाक चालि।
क्यो कुहरय , क्यो कानय बैसल, क्यो पीटि रहल अछि झालि ॥
क्यो पीटि रहल अछि झालि, भेल अपने मे विभोर ।
एही बीच चानी पीटइए, साधू भेष मे चोर॥
आब परीक्षा नहि लिअय भगवन, दिअय शक्ति अपार।
जाहि बले धरती कें कय दी, दैत्यक तांडव सं उबार ॥
दैत्यक तांडव सं उबार, करी हम वा अपने चलि आउ ।
जरा रहल छी श्रद्धा-दीप, आब जुनि बाट तकाउ ॥
:-रूपेश कुमार झा 'त्योंथ'-:

पश्चिम मे पपियाहक तांडव, पूब तकै छी भोर॥
पूब तकै छी भोर, मुदा बटतक्की अछि लागल।
राति जेना बनि गेल अहद्दी, हम छी बनल अभागल॥
अन्हार बढ़ल, छी कतय नुकायल दिनकर-दीनानाथ।
प्रकाश पसारब छोडि कतय, तकै छी कोन-कोन लाथ॥
तकै छी कोन-कोन लाथ, जगत मे पसरल हाहाकार।
निशाचरक अछि तांडव बढ़ल, असह्य भेल प्रहार॥
डुमल बाइढ सं अयाचिक बारी, उपजत कतय साग।
पेट भरब भेल मोश्किल, पहिरब की टोपी-पाग॥
पहिरब की टोपी पाग , आगि लागल अछि सउँसे हाट।
कप्पार पकडि कय कानय जन-गण, खा उपेक्षाक चाट॥
रामक धरती पर शान सं, चलबइए रावण राज ।
सता संत कें ठिठियाइत कनिको , लगैछ ने ककरो लाज ॥
लगैछ ने ककरो लाज, कतय सुतल छी रघुबीर ।
की ध्वंश भेल अछि धनुष, आ बिझा गेल अछि तीर ॥
प्राण पियासल आतंकीक भय सं, लोकक अछि उपरे दम।
हाट, बजार वा टीशन सगरो, फुटैछ फटक्का बम॥
फुटैछ फटक्का बम , तें जिनगीक ने कोनो ठीक।
जनता भेल बेहाल मुदा , सरकारक ने डोलैछ टीक॥
अजगुत लगैछ देखि चहुँदिस , जग-जमानाक चालि।
क्यो कुहरय , क्यो कानय बैसल, क्यो पीटि रहल अछि झालि ॥
क्यो पीटि रहल अछि झालि, भेल अपने मे विभोर ।
एही बीच चानी पीटइए, साधू भेष मे चोर॥
आब परीक्षा नहि लिअय भगवन, दिअय शक्ति अपार।
जाहि बले धरती कें कय दी, दैत्यक तांडव सं उबार ॥
दैत्यक तांडव सं उबार, करी हम वा अपने चलि आउ ।
जरा रहल छी श्रद्धा-दीप, आब जुनि बाट तकाउ ॥
:-रूपेश कुमार झा 'त्योंथ'-:
हमर ईमेल:-hellomithilaa@gmail.com
Bahut badhiyan likhlaun
जवाब देंहटाएंHello Mithila Redio Ham Ghar Pe Rose Suni Chhi
जवाब देंहटाएंShashi
जवाब देंहटाएंShashi Khutauna
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