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हमर विवाह 2 ( दोसर कड़ी )

जान सांसत में
ओम्हर मां-बाबूजी परेशान, एम्हर हमर जान सांसत मे। ई पंडितबा एहन बीर्रौ लाएब देलक जे... आब की-की कहू। भेंटित तs किछु करतिअइ। बाबूजी आ मां के तs हरदम हमर बिआहे के फिकिर लागल रहै छनि- कखन करबह, केहन करबह, नजर में कोनो छि तs बताबs। नहि जाने कतेक सवाल! कतेको कन्यागत के तs ओ दिल्ली डेरा पर सेहो भेज चुकल छथिन्ह, आओर कतेको तs अपने-आपे आबि गेलाह लड़की तक के ल' क'।

हुनकर सभ के कहनाइ छल- "अहां बस हां कहि दिअ। हम अहांक बाबूजी के मना लेब। दहेज के कोनो बात नै। घोड़ा-गाड़ी, मकान, पाई—सभ मिलि जाएत। बस अहां सिर्फ अपन स्वीकृति दिअ, बाकी सभ हमरा पर छोड़ि दिअ।"

मुदा एहिठाम तs पंडित तेसरे मोड़ द' देलक। मां-बाबूजी के शादी के बात कोनो बेजाय नै, मुदा हम चाहैत छी जे अखन किछु काज क' लेल जाय, अपन नाम कमा लेल जाय। अखन हमरा मे जे उमंग, उत्साह, जोश, लगन अछि, ओ आगू रहत कि नै- के जानय! काल्हि के के देखलक? फेर, जे हमर बॉस छथि, ओ हमरा पर पूरा विश्वास करैत छथि। एहन बॉस फेर भेटत कि नै, के कहि सकै छै? नबका-नबका प्रोजेक्ट के जिम्मेदारी भेटल अछि, आओर एहन इंटरनेशनल प्रोजेक्ट त भाग्य सं हाथ लगैत अछि। एक बेर काज मे अनठिआबय लागब त फेर बॉस सेहो नीक काज देबय मे हिचकय लगताह। शादी-बिआह त दू साल बादो भ' सकै छै, मुदा काज त एक बेर हाथ से गेल त फेर...

मुदा लोक के कहनाइ छै- शादी-बिआह उम्रे मे नीक लगैत छै। बाद मे लोक बुढ़बा वर कहि क' चिढ़बैत अछि। तैं बाबूजी सभ किछु टाइमे पर नीक मानैत छथिन्ह। अजीब घनचक्कर मे फंसि गेलौं। किछु नै फुराइत अछि जे की कएल जाए।

मन मे दस तरहक बात आबि रहल छल। नींद कोसों दूर छल। करवट पर करवट बदलि रहल छलौं। एहि क्रम मे ओ घटना मोन पड़ि गेल, जब एकटा कन्यागत डेरा पर पहुंचल छलाह। कन्या के बाबूजी आ भाय, संग मे कन्या के फोटो आ बायोडाटा सेहो लेने आएल छलाह। हम दुनू गोटे के जे होबाक चाही, से स्वागत-सत्कार कएलौं—ठंडा, चाय-पानि, भुजिया-बिस्किट, मिठाई।

मिथिलाक गाम-घर दिस सं छलाह, अपनापन छलन्हि। तैं नीक सं गप्प भेल—पढ़ाई-लिखाई, काज-काम, रहन-सहन आ आगां के योजना सभ पर बातचीत भेल।

बीच मे कन्या के भाय अपन बहिनक फोटो आ बायोडाटा देखय के आग्रह कएलन्हि। मन त बड़ भेल जे एक नजर देखि लेल जाय, मुदा वर पक्ष के जे अकड़ि होए छै, ओकरा केना छोड़ि देतिअइ। कहलिएन्हि- "फैसला त मां-बाबूजी के करय के छनि। अहां ई फोटो हुनके किएक नै देखा दैत छी?"

लड़की के भाय जोर द' लिफाफा हाथ मे थमा देलन्हि—"हुनका त हम देखाए देबैन्हि। एक बेर अहां देख लिअ। लड़की सेहो दिल्ली मे अछि, जहिया कहब तहिया मिला देब। अहां फोन पर सेहो गप्प क' सकैत छी। अहां सभ आजुक दौर के लोक छी, हम सभ बाधा नै बनब। दुनू गोटे एक बेर मिलि लिअ, आमने-सामने बैसि गप्प क' एक-दोसर के जानि लिअ। फेर अहां के जे फैसला होएत, हमरा मंजूर। अहां कोनो फैसला लेबय लेल स्वतंत्र छी, हमरा तरफ सं कोनो दबाव नै। हम त कन्या पक्ष के छी, बस आग्रह क' सकैत छी।"

लिफाफा हमर हाथ मे छल। मोन भेल जे कखन दुनू गोटे जैताह, जे हम लिफाफा मे बंद सुन्दरी के दर्शन करी। बेस, ओ जेना हमर मन के बात बुझि गेलाह आ विदा लेलन्हि।

हुनका सभ के जाएते झट द' लिफाफा खोललौं। फोटो देखते मुंह सं अपने-आप निकलि गेल—"सुभान अल्लाह!"

प्रथम प्रेम के उत्पत्ति...
गुलाबी साड़ी मे लिपटल मैथिल सुन्दरी, गुलाब फूल जकां खिलल ठोर, झील सन आंखि—साक्षात प्रेमक मूर्ति नजर आबि रहल छलीह।

हमर विआह के अगिला कड़ी के लेल पढ़ैत रहुं हेलो मिथिला

1 टिप्पणी:

  1. Really a difficult situation. I can understand your case, many similar things happened with me, still unmarried. The decision should be yours, but if you are not going to marry, then please make yourself so busy in work that it may not affect your personal life! Otherwise I am seeing full scenario of falling in love from your side. It happens unexpectedly!So don´t laugh on my suggestions.

    When all these situations went through my life, for a moment I decided to devote myself in so much work, that it may become history, and I did everything!

    I am doing my work, happy but also seraching for the things which I have lost!

    This time your post was legible, thanks as the ad banners were in the begining and in the end...

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