सामा-चकेबा मिथिलांचलक एकटा खास लोक पर्व अछि. ई सिर्फ मिथिलांचले टा में मनायल जाइत अछि. ई मिथिलाक लोक संस्कृति सं जुड़ल त अछिए..एकर पौराणिक मान्यता सेहो अछि. कहल जाइत अछि जे सामा भगवान श्रीकृष्ण के पुत्री श्यामा छलिह जे अपन पिताक श्राप के कारणे चिड़िया बनि गेलिह. एकर जिक्र विष्णु पुराण में सेहो मिलैत अछि. सामा चकेबा असल में भाई बहिनक प्रेमक पावनि अछि. अहि में सामा चकेवा... सतभइया... बृंदावन... चुगला... ढोलिया बजनिया... बन तितिर ...पंडित आओर दोसर मूर्ति खिलौना सं खेलल जाइत अछि... सन स बनल चुगला के जलायल जाइत अछि... पूर्णिमा के दिन विदाई देल जाइत अछि आओर अंत में विसर्जन कए देल जाइत अछि.
कहल जाइत अछि जे भगवान श्रीकृष्णजी के बेटी श्यामा... सामा के जंगल में खेलय के शौक छलन्हि... अपन एहि प्रकृति सं जुड़ल रहय के शौक... प्रकृति के गोद में असीम शांति मिलय के शौक... फूल पत्ती... पक्षी सं खेलय के शौक के लेल ओ हर दिन पौ फूटतहिं जंगल चलि जाइत छलिह. सामा के प्रकृति सं जुड़य... गाछ-बृक्ष... पशु-पक्षी सं खेलय के ई बात चुगला के नीक नहिं लागल. ओ सामा के बारे में अंट संट...उल्टा पुल्टा बात सभ जाक श्रीकृष्ण जी के बता देलक. एहि पर खिसियाक कृष्ण भगवान सामा के चिड़िया बनि जाइ के श्राप दय देलथिन्ह. जहि सं सामा चिड़िया बनि गेलिह.
कई वर्षक बाद जखन कृष्ण भगवान के पुत्र भेलन्हि तं हुनका अपन बहिन के बारे में पता लगलन्हि. बहिन के बारे में जानला के बाद ओ बहिन के श्राप मुक्त करय आ वापस लाबय लेल लगि गेलाह. ओ जिद ठानि लेलन्हि जे बहिन के बिना जिंदा नहिं रहताह. हारि कय भगवान के कहय पड़लन्हि जे कार्तिक मास के अहांक बहिन अयताह आओर पूर्णिमा के विदा भय जयताह. तहि दिन सं भाई- बहिनक प्रेमक.. स्नेहक ई पावनि...सामा चकेबा के रूप में मनावल जाइत अछि.
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