-श्यामल सुमन-
प्रश्न सोझाँ मे ठाढ़ अछि अप्पन की पहचान।
प्रश्न सोझाँ मे ठाढ़ अछि अप्पन की पहचान।
ताकि रहल छी आय धरि भेटल कहाँ निदान।।
ककरा सँ हम की कहू अपना मे सब मस्त।
समाचार पूछल जखन कहता दुख सँ त्रस्त।।
पँसल व्यूह मे स्वार्थ केर सब देखू बेहोश।
झूठ मूठ मुखिया बनथि खूब बघारथि जोश।।
हम देखलहुँ नहि आय धरि मैथिल सनक विवाह।
दान दहेजक चक्र मे बहुतो लोक तबाह।।
बरियाती केँ नीक नहि लागल माछक झोर।
साँझ शुरू भोजन करत उठैत काल तक भोर।।
रसगुल्ला, गुल्ला बनाऽ खाओत रस निचोड़ि।
खाय सँ बेसी ऐंठ कऽ देता पात मे छोड़ि।।
मैथिलजन सज्जन बहुत लोक बहुत विद्वान।
निज-भाषा, निज-लोक पर कनिको नहि छन्हि ध्यान।।
चोरि, छिनरपन छोड़ि कय करू अहाँ सब काज।
मैथिलजन तखने बचब बाँचत सकल समाज।।
जाति-पाति केँ छोड़िकऽ बनू एक परिवार।
मिथिला के उत्थान हित कोशिश करू हजार।।
अपन लोक बेसी जुटय बाजू मिठका बोल।
सुमन टूटल जौं गाछ सँ तखन ओकर की मोल।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अहां अपन विचार/सुझाव एहिठाम लिखु