कनकनी सं मिथिलांचल के लोक परेशान अछि. ओना तिला संक्रांति के आस पास सर्दी किछ कम भेल छल मुदा फेर बढ़ि गेल अछि. दरभंगा... मधुबनी... सीतामढ़ी... लौकही के जतेक लोक सं बात भेल सभ गोटे ठंड सं परेशान छथि. अगर धूप निकलबो करय छै त हवा में एतेक कनकनी रहय छै... जे लोक के माथा आओर कान झापने कोनो गुंजाइश नहिं. गाम घर में त लोक सभ घुर तापि गप्प मारैत ठंड सं बचय के कोशिश करय छथि. मुदा नुनु सभ त मानय नहिं छथिन्ह न... ओ सभ एहि कनकनी वाला ठंड में सेहो खेलय निकलि जाइ छथिन्ह. नाक बहैत रहौ... पोटां बहैत रहौ... कोनो बात नहिं.
भोर में त कुहासा ... कोहरा सं किछ दिखायतो नहिं रहैत अछि. कई ठाम त गाड़ी सभ दुर्घटना के शिकार सेहो भ जाय छै... किछ दिखबे नहिं करैत अछि. दस बारह बजे के बाद किछ फरछियाई छै. बेसि जरूरी काज नहिं रहल त लोक घरे पर रहनाय नीक समझय छथि. लोकक काम काज सभ एम्हर ओम्हर भ गेल छै. खेत में काज करय वाला... रिक्शा ठेला चलाबय वाला... मजदूरी कय कमाय खाय वाला लोक सभ परेशान छथि. एहि ठंड में काज सेहो नहिं मिलय छै. सरकार या कोनो गैर सरकारी संगठनक तरफ सं नहिं के बराबर मदद मिल रहल छै. कम्बल... कपड़ा बंटय के चर्चा नहिं के बराबर अछि. बस आगि तापैत रहुं. आई काल्हि बिजली के स्थिति सेहो खराब छै. चौबीस घंटा में मुश्किल सं दु चारि घंटा लाइन रहय छै. एहि में केना चलायब हीटर आ गीजर. बल्ब टिपटिपा जाइअ सेहो बेस.
ई सर्दी में एकेटा मजा आबय छै खाय पीबय में... लाई मुरही... तिलबा...बगिआ... पीठा ... लिट्टी चोखा... सतुआ भरल रोटी... खूब तितगर झोड़ वाला...रसवाला सब्जी... माछ भात... मांस भात खाय लेल ई मौसम सभ सं बेस छै. कचौड़ी... पकौड़ी.. कचड़ी मुरही...आलु चॉप झाल मुरही... प्याज मिरचाई लगा भूजा सभ खाय में जे आनंद छै ओकरा की कहल जाय... एकर असल आनंद त गाम घर में रहिए कS उठा सकय छी. नवका चिउड़ा गुड़ के संग चिबाबय में जे आनंद छै ओ कSत मिलत. चना के आगि में पका के ओरहा खाय में जे मन लगैत अछि ओ स्वर्गीक अछि. एकर आनंद... मजा शहर में रहय वाला लोक कहिओ नहिं लय सकैत छथि. घुरक आगि में आलु... अल्हुआ पका खायब सभ के नसीब नहिं भय सकय छै. गाम में कष्ट छै मुदा हमर मिथिलाक लोक कष्ट के बीच जे आनंद उठाबय छथि ओ एहि दुनिया में कतहुं आओर के लोक नहिं उठा सकैत छथि.
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