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ककर ग़लती

कतेक दिवससँ
सोचैत रही
जे
गाम जाएब
परञ्च
दिल्लीक उथल-धक्कासँ
मुक्त होएब तखन ने।

पछिला दशहरामे
जखन गाम पहुँचलहुँ
तँ आड़ि पकड़ि टोल
अबैत रही।

ओहि ब्रह्मबाबाक ठामपर
एकटा स्त्रिगण बैसलि रहथि
की कहू, धक्कसँ रहि गेलहुँ
कंठक थूक कंठहिमे सुखा गेल

स्त्रिगण कोनो भूत नहि छलीह
ओ कोनो डाइन-जोगिन सेहो नहि रहथि
ओ गौरी दाइ छलीह
बियाहक ठामे साल
विधवा भेल

ताहि दिनसँ ओ नवयुवती
उजरा नुआ पहिरैत छथि
सीथमे चुटकी भरि सेनूर नहि,
गुमसुम रहैत समय काटि रहल छथि।

तँ हुनका देखि
सदिखन सोचैत छी
की यैह मिथिला थिक
यैह हमर संस्कृति थिक
मनकेँ मारि कए एकटा नवयुवती
जीवन काटि रहल अछि
ओकरा कियो देखनिहार नहि छैक

ओ नवयुवतीक सिउथ
जुआनीमे उजड़ि गेल
ताहि दिनसँ ओकरापर
की बितैत होएत

जे पति बीमारीसँ मरि गेलखिन
एकरामे गौरी दाइक की दोख
दोख तँ हुनक पिताक छनि
जिनका वरक बीमारीक जानकारी नहि छल
मुदा ओहो की करताह
घटक बनि कऽ गेल रहथि
द्वितीकार जे कहलन्हि
सैह ने सत्य मानितथि

ई गप सत्य छल
जे गौरी दाइ
अपन पिताक गलतीक
सजा भोगि रहल छथि
भाग्यकेँ कोसि रहल छथि

आब की कही
देश-परदेशमे तँ
वर- कनिया बदलि जाइत अछि
जेना छः मासपर
बदलैत छी हम अपन अंगा

मुदा, ई गौरी दाइ
बीसेक साल बादो
नहि बदलतीह
ओहि दिनसँ
पतिक वियोगमे
दिन-राति कुहरैत रहतीह

कियो कतहुसँ खुशियोमे
हुनका नोत नहि देतन्हि
कियो अपन नवजातकेँ
खेलाबए लेल
नहि कहतन्हि

की करती गौरी दाइ
कियो हुनका देवी कहतन्हि
तँ डाइन-जोगिन कहबासँ
लोक-वेद पाछुओ नहि रहतन्हि।
साभार : पद्य संग्रह "हम पुछैत छी"



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