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आत्मदर्शन


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ठोकलहुँ पीठ अपन अपने सँ, बूझलहुँ हम होशियार।

लेकिन सच कि एखनहुँ हम छी, बेबश आउर लाचार।

यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनि लिय हमर पुकार।।

गाम जिला के मोह नहि छूटल, नहि बनि सकलहुँ हम मैथिल।

मंडन के खंडन केलहुँ , बिसरि गेल छी कवि-कोकिल।

कानि रहल छथि नित्य अयाची, छूटल सब व्यवहार।

बेटीक बापक रस निकालू, छथि सुन्दर कुसियार।

यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनि लिय हमर पुकार।।

मिथिलावासी बड़ तेजस्वी, इहो बात अछि जग जाहिर।

टाँग भीचै मे अपन लोक के, एखनहुँ हम छी बड़ माहिर।

छटपट मोन करय किछु बाजी, सुनबालय क्यो नहि तैयार।

मुखिया नहि मानथि समाज मे, एक सँ एक बुधियार।

यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनि लिय हमर पुकार।।

"संघे शक्ति कलियुगे" केर, कतेक बेर सुनलहुँ हम बात।

ढ़ंगक संघ बनल नहि एखनहुँ, हम छी बिल्कुल काते कात।

सुमन हाथ लय बिहुँसल मुँह सँ, स्वागत सत्कार।

हृदय के भीतर राति अन्हरिया, चेहरा पर भिनसार।

यौ मैथिल जागू करू विचार। यौ मैथिल सुनि लिय हमर पुकार।।

-श्यामल सुमन, जमशेदपुर



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