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खुनिञा खेत


खुनिञा खेतपर पहुँचिते ने जानि अंकितक मन किए खराब होबऽ लागल. खेतपर एबासँ पहिने धरि तँ ठीके छल. 

गाम घुमबाक क्रममे ओ बौआइत-बौआइत एहि ठाम पहुँचि गेल छल. दू दिन पहिने ओ गर्मी छुट्टीमे गाम आयल छल. आइ की ने की फु रेलै आ ककरो बिनु किछु कहने ओ एसगर गाम घुमबा लेल निकसि गेल.

ओमहर गामपर जखन साँझ धरि अंकित नञि पहुँचल तँ घरक लोकवेदकेँ
चिन्ता होबऽ लागल. ताकाहेरीक क्रममे क्यौ कहलनि जे किछु काल पहिने ओ अंकितकेँ खुनिञा खेत दिस जाइत देखने छला.

खुनिञा खेतक नाम सुनैत देरी अंकितक बाबी डेरा गेली. ओ तखनेसँ देवता-पितरसँ इनती मिनती करऽ लागल छली.

घरक लोक जखन खेतपर पहुँचला तँ देखै छथि जे अंकित ओहि ठाम अचेत पड़ल अछि. घरपर अनबाक बाद अंकितकेँ पहिने गामक डाक्टरसँ देखाओल गेल.

डाक्टरक कहब छल जे बेसी चिन्ता करबाक बात नञि अछि. किछु कालमे ओकरा होश आबि जेतै. रौदमे बौएबाक कारणेँ ओकर घुरमा लागि गेलै अछि. 

दोसर दिस अंकितक बाबी कुलदेवताक घरमे धर्मराज बाबा लग पेटकु निञा देने छली. नञि जानि हुनका किए डाक्टरक बातपर विश्वास नञि भऽ रहल छलनि.

हुनका मनमे नाना प्रकारक बात घुमऽ लागल छलनि. हुनका पचास बरख पहिनेक घटना मन पड़ि रहल छलनि.

तहिया हुनकर द्विरागमन भेला पाँच बरख भेल छलनि. एक दिन हुनकर ससुर जगत झा कोनो भूमि विवादक कारणेँ विरोधी सभ पर बड़ तमसायल छला. घर आबि भाला लेबाक बाद ओ एसगरे खेत दिस बिदा भऽ गेल छला.

गामक लोक सेहो हुनका भगवती स्थानमे गोड़ लगैत देखेन छला. ओ आवेशमे भगवतीसँ कहि रहल छला- ‘हे माँ आइ की तँ जान लऽ कऽ ओहि ठामसँ आयब, नञि तँ अपन जान दऽ कऽ. आब सभ किछु अहीँक हाथमे अछि.’

जखन खेतपर पहुचला तँ गामक लोकवेद दुनू पक्षमे सुलह करा कहुना झमेला शान्त करबेने छला. शान्ति हेबाक बाद सभ क्यौ खेतपरसँ आबि गेला, मुदा जगत बाबू ओही ठाम मन शान्त करबा लेल बैसि गेला.

ओ निश्चिन्त छला. गुनधुन कऽ रहल छला जे भने शान्ति भ गेल. मारिपीटसँ कोनो समस्याक निदान होइ छै थोड़बे?
कादोसँ कहीँ कादो धोखरय?

ओमहर विरोधी पक्ष एखनो अपना मनक मैल नञि धो सकल छल. ओकरा मनमे प्रतिशोधक आगि जरिए रहल छलै. ओ जगत बाबूकेँ एसगर देखि अवसरक लाभ उठेलक आ सभक गेलाक बाद चुप्पे आयल आ पाछाँसँ हुनका पाँजरमे भाला मारि देलकनि.

जाबत जगत बाबू सम्हरथि भालाकेँ घुमा कऽ बाहर खीचि देलकनि आ एक्के बेर पेटक अँतरी बहरा गेलनि. घायल हेबाक बादो जगत बाबू भाला मारनिहारकेँ बहुत दूर धरि खेहारलनि, मुदा देहसँ शोणित बड़ बेसी बहार भऽ जेबाक कारणेँ ओ पकड़ि नञि सकला.

अर्रा कऽ खसला. कने काल हकमैत रहला. शोणितसँ धरती लाल होइत रहल. फेर हिम्मति केलनि आ अपन अँतरीकेँ समेटि पेटमे कोँचि गमछासँ बान्हि कहुना कऽ भगवती स्थान आबि गेला. भगवतीकेँ प्रणाम केलनि आ कहलनि ‘माँ पपियाहा सभ हमरापर पाछाँसँ आक्रमण केलकौ, मुदा हम एखन हारि नञि मानने छी.’

जगत बाबू बिदा भऽ गेला सुपौल बजारक पुलिस थाना. थानापर जाइत-जाइत ओ बेहोश भऽ खसि पड़ला. हास्पिटलमे भर्ती करेबाक उपरान्त हुनका किछु काल लेल चेतना एलनि.

एहि क्रममे ओ पुलिसक सोझाँमे बयान देलनि जे ‘जुगल कु मर हुकुम देलक आ बुच्चन कुमर मारलक’. अर्द्ध चेतनामे उन्टे बयान दऽ दम तोड़ि देलनि. असलीहतमे बुच्चन कुमर कहने छला आ जुगल कुमर हुनका भाला मारने छला.

अंकित केर बाबीकेँ ओहो दिन बड़ नीकसँ मोन छनि जहिया पुलिस गाममे आयल छल आ जुगल कुमरकेँ कोबरसँ पकड़ि कऽ लऽ गेल छल. बाबीकेँ आरो-आरो बहुत रास बात स्मरण भऽ रहल छलनि, कि तखने क्यौ आबि क ऽ जनतब देलकनि जे अंकितकेँ होश आबि गेलै अछि.

बाबी दौड़ली आ अंकितकेँ पँजिया रटऽ लगली जे किछु भऽ जायत आब ओ अपन एकमात्र कुलक दीपककेँ मिझाय नञि देती. ओ सप्पत दऽ रहल छली जे अंकित फेर कहियो खुनिञा खेतपर नञि जायत. आ अंकित सोचि रहल छल जे मात्र एक बीत भूमि लेल कोना लोक जान दऽ दैत अछि?

भूमि तँ पड़ले अछि. जाहि ठाम ओकर बाबाक खून भलै ओहि धरतीक कोन दोख? ओ तँ ककरोसँ लड़बा लेल नञि उताहुल भेल. लड़ल मनुक्ख आ नाम ओकर पड़ि गेलै खुनिञा खेत. दोख मनुक्ख केर स्वभावक आ आरोप धरतीपर.

की फल भेल झगड़ाक. ओकर बाबा मारल गेला आ विरोधी जहलमे पड़ल अछि. ओ भूमि कहबे लेल खेत अछि. पचास सालसँ ओहिपर खेती कहाँ भऽ रहल छै?

मनुक्खक मिथ्या अहंकार ओकरा दण्डित कऽ रहल छै. ओ परती पड़ल हकन्न कानि रहल अछि. अंकित मने मन निर्णय लऽ रहल छल ‘चाहे जे हो, ओ बाबीकेँ मनायत, विरोधी पक्षसँ बात करत, नवका पीढ़ीक मन जरूर बदलल हेतै....खेत चाहे जे जोतय आब धरतीकेँ बाँझ किन्नहुँ नञि रहऽ देत.’                     

कहानी-रोशन कुमार झा

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