एक धूर जमीनक लेल
जे अहाँ चिचिया रहल छी
की सोचैत छी
अहाँ संगे लऽ जाएब
एक धूर जमीन सँ
किछु नहि होएत
साल आकि हजार सालसँ
जमीन ओही ठाम छैक
आइ छी अहाँ
काल्हि नहि रहब
जे अहाँक जमीन छेकने छथि
ओ सेहो नहि रहताह
मरलाक बाद
चारि हाथ जमीन चाही
अंतिम संस्कार लेल
तकरा बाद सब छी माटि
तखन एक धूर माटि लेल
कथीले मरैत छी
कथीले चिचियाइत छी
कथी लेल मन मिलन करैत छी
तँ सुनु, नहि करू
एहि माटि लेल हाए-हाए
कोनो एहन काज करू
माटि आकि सभक करेजमे बैसि जाऊ.
विनीत उत्पल
( हम पुछैत छी )
हमर ईमेल:-hellomithilaa@gmail.com
bahut sunder likhne chiyaee.
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