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एकटा आर चोरि

http://koshimani.blogspot.com/2011/09/blog-post_11.html रंजीत का ब्लाग "दो पाटन के बीच में" का पोस्ट "पुल के पार"


" सोहन जादव के ममहर (मां का गांव) भी ओही पार में था। बचहन (बचपन) में सोहना एक बेर गिया था अपन ममहर, जब ओकर नानी का नह-केस (श्राद्ध कर्म) था। लोग कहते हैं जिस साल सोहना की नानी मरी थी वोही साल कोशिकी मैया खिसक गयी थी। सब रास्ता-बाट बंद हो गिया और फेर केयो नै जान सका कि सोहना के मामा लोग कहां पड़ा गिये। हमर कका (पिता जी) कहते थे कि जब कोशिकी नहीं आयी थी, तो ई गांव के चैर आना (25 प्रतिशत) कथा-कुटमैत उधरे था, दैरभंगा (दरभंगा)जिला में। बान्ह टाढ़ होने के बाद तो पछवरिया मुलुक (पश्चिमी इलाका) से हम लोगों के आना जाना समझिये साफे बंद था। नेपाल होके आवत-जावत तो मातवरे लोग कर सकते हैं। आब पुल बइन जायेगा, तो फेर सें टुटलका नता-रिश्ता पुनैक जायेगा।''

लगभग 70-72 साल के वृद्ध दुखमोचन मंडल जब यह सब कह रहे थे, तो उनके चेहरे पर जैसा उत्साह था और आंख में अजीब तरह की चमक थी। ऐसी चमक अब आम किसानों की आंखों से गायब हो गयी है। पहले दुखमोचन को विश्वास नहीं होता है, लेकिन अब उसे यकीन हो चला है कि कोसी पर महासेतु बनाया जा सकता है। हाल तक उसकी धारणा थी कि कोशी के दोनों सिरे को जोड़ा नहीं जा सकता।
सुपौल जिले के सरायगढ़ स्टेशन से उतरने के बाद पश्चिम की ओर अगर निगाह डालें तो शायद आपको भी विश्वास होने लगेगा कि यहां कोई ऐतिहासिक निर्माण कार्य चल रहा है। कोशी के पूर्वी बांध पर पहुंचने के बाद महासेतु के महापाये साफ-साफ दिखने लगते हैं। अधिकारियों का कहना है कि जनवरी तक इससे आवाजाही शुरू हो जायेगी। इसके साथ ही केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी पश्चिम-पूर्वी कोरिडोर सड़क योजना का मिसिंग लिंक भी रीस्टोर हो जायेगा। द्वारका से गुवाहटी, दिल्ली से सिलीगुड़ी तक सीधी बस या ट्रेन सेवा हो सकेगी, बिना किसी घुमाव या मेकशिफ्ट के। सुपौल, अररिया, मधेपुरा, पूर्णिया, दरभंगा, मधुबनी में ऐसी बातें खूब सुनने को मिल रही हैं। नेता-अधिकारी से लेकर हलवाहे-चरवाहे तक इन दिनों महासेतु का ही गुण गा रहा है। मन कहता है कि मैं भी उनकी हां-में-हां मिला दूं, लेकिन दिमाग रोक लेता है। कोशी के सीने पर अंगद के पांव की तरह जमाये गये लोहे-कांक्रिट के विशालकाय पाये भी मुझे भरोसा नहीं दिलाते। अभियंताओं का दावा है कि यह पुल कोशी के 15 लाख क्यूसेक पानी को बर्दाश्त कर सकता है। चूंकि पिछले 20-30 सालों में कोशी में इतना पानी कभी नहीं आया, इसलिए मान लेता हूं कि इस पुल को पानी से कोई समस्या नहीं होगी। कोशी लाख यत्न कर ले, पुल उसका दामन नहीं छोड़ेगा और टिके रहेगा। लेकिन जब मेरे जेहन में सवाल उठता है कि अगर कोशी ने ही पुल को छोड़ दिया, तो ? इस सवाल का जवाब अभियंताओं के पास नहीं है। हालांकि वे सुस्त स्वर में कहते हैं कि ऐसा नहीं होगा। लेकिन जिसने कुसहा के कटाव को देखा है, जिसने कोशी की तलहटी को मापा है, वे कहते हैं- "कोशी तो अब धारा बदल के रहेगी।'' वैसे हालत में पुल तो खड़े रहेंगे, लेकिन उसकी प्रासंगिकता नहीं बचेगी।मैंने पता लगाने की कोशिश की क्या कोशी महासेतु की पीपीआर या डीपीआर को तैयार करते समय महान अभियंताओं ने इस पहलू पर विचार किया था। जवाब नहीं मिला। दरअसल, पुल की डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने के दौरान इस पहलू को साफ तौर पर नजरअंदाज कर दिया गया कि नदी धारा बदल सकती है। गौरतलब है कि जब कोशी महापरियोजना को स्वीकृति मिली थी, तब किसी इंजीनियर या सलाहकार ने सरकार के सामने यह सवाल नहीं उठाया। अब जबकि पुल पर 400 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, तो भला कौन ऐसा अटपटा सवाल पूछेगा। वह भी तब जब इलाके का बच्चा भी पुल गान में मस्त है। पुल के साथ पूर्णिया से दरभंगा तक चार लेन सड़क और रेलवे ट्रैक के निर्माण में जो राशि खर्च हुई है या होने वाली है उन्हें अगर जोड़ लें तो बजट हजार करोड़ तक पहुंच जायेगा।
अच्छा तो यह होता कि योजना की डीपीआर में कोशी के धारा परिवर्तन पर भी विचार कर लिया जाता। यह काम नहीं हो सका। ऐसे में अब इस परियोजना की सार्थकता कोशी के रहमो-करम पर निर्भर करेगी। आइये हम सब मिलकर कोशी मइया से दुआ करें कि वह मान जाये। नैहर जाने की जिद छोड़ दे। साठ वर्षों से दो हिस्से में विभाजित मिथिलांचल को फिर से एक कर दे ।
· · · · 5 minutes ago


    • Ashish Anchinhar ऐ रचनाकेँ मैथिलीक एकटा ब्लाग अनुवाद कऽ चोरि कऽ लेलक http://www.esamaad.com/regular/2011/09/9002/ स्थिर पुल आ भटकैत कोसी
      Published: September 11, 2011Posted in: समाचारTags: कोशी, कोसी, दरभंगा, मिथिला, मैथिली

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      कोसी पर तैयार भेल महासेतु स मिथिला मे जे उत्‍साह अछि ओकरा रेखांकित करैत वरीय पत्रकार रंजीत कुमार अपन एहि रिपोतार्ज मे किछु आशंका क संग कोसी पर विश्‍वास कए पुनर्स्‍थापित करबाक कोशिश केलथि अछि। – समदिया

      ” सोहन जादव के ममहर (मां का गांव) भी ओही पार में था। बचहन (बचपन) में सोहना एक बेर गिया था अपन ममहर, जब ओकर नानी का नह-केस (श्राद्ध कर्म) था। लोग कहते हैं जिस साल सोहना की नानी मरी थी वोही साल कोसी मैया खिसक गयी थी। सब रास्ता-बाट बंद हो गिया और फेर केयो नै जान सका कि सोहना के मामा लोग कहां पड़ा गिये। हमर कका (पिता जी) कहते थे कि जब कोसी नहीं आयी थी, तो ई गांव के चैर आना (25 प्रतिशत) कथा-कुटमैत उधरे था, दैरभंगा (दरभंगा) जिला में। बान्ह टाढ़ होने के बाद तो पछवरिया मुलुक (पश्चिमी इलाका) से हम लोगों के आना जाना समझिये साफे बंद था। नेपाल होके आवत-जावत तो मातवरे लोग कर सकते हैं। आब पुल बइन जायेगा, तो फेर सें टुटलका नता-रिश्ता पुनैक जायेगा।”

      लगभग 70-72 साल क वृद्ध दुखमोचन मंडल जखन इ सब कहि रहल छलाह, त हुनकर चेहरा पर जहन उत्साह छल आओर आंखि मे अजीब तरह क चमक छल, एहन चमक आब आम किसानक आंखि स गायब भ चुकल अछि। पहिने दुखमोचन कए विश्वास नहि होइत छल, मुदा आब ओकरा यकीन भ गेल अछि जे कोसी पर महासेतु बनाउल जा सकैत अछि। हाल तक ओकर धारणा छल जे कोसी क दूनू सिरा कए जोडल नहि जा सकैत अछि।
      सुपौल जिलाक सरायगढ़ स्टेशन स उतरलाक बाद पश्चिम दिस अगर नजरि दी त शायद अहां कए सेहो विश्वास हुए लागत जे एहि ठाम कोनो ऐतिहासिक निर्माण कार्य चलि रहल अछि। कोसी क पूर्वी बांध पर पहुंचलाक बाद महासेतु क महापाया सब साफ-साफ देखाइत अछि। अधिकारी क कहब अछि जे पुल लगभग तैयार अछि, जनवरी तक आवाजाही शुरू भ सकैत अछि। एकर संगहि केंद्र सरकार क महत्वाकांक्षी पश्चिम-पूर्वी कोरिडोर सड़क योजना क मिसिंग लिंक सेहो रीस्टोर भ जाएत। द्वारिका स गुवाहटी, दिल्ली स सिलीगुड़ी तक सीधा बस या ट्रेन सेवा भ सकत, बिना कोनो घुमाव या मेकशिफ्ट कए।


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      कोसी पर तैयार भेल महासेतु स मिथिला मे जे उत्‍साह अछि ओकरा रेखांकित करैत वरीय पत्रकार रंजीत कुमार अपन एहि रिपोतार्ज मे किछु आशंका क संग कोसी पर विश्‍वास कए पुनर्स्‍थापित करबाक कोशिश केलथि अछि। – समदिया

      2 minutes ago · ·

    • Ashish Anchinhar ऐ रचनाकेँ मैथिलीक एकटा ब्लाग अनुवाद कऽ चोरि कऽ लेलक स्थिर पुल आ भटकैत कोसी
      Published: September 11, 2011Posted in: समाचारTags: कोशी, कोसी, दरभंगा, मिथिला, मैथिली

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      Facebook http://www.esamaad.com/regular/2011/09/9002/ सुपौल, अररिया, मधेपुरा, पूर्णिया, दरभंगा, मधुबनी मे एहन गप खूब सुनबा मे भेटैत अछि। नेता-अधिकारी स ल कए हलवाहे-चरवाहे तक काइ काल्हि महासेतु क गुण गाबि रहल अछि। मन कहैत अछि जे हमहूं हुनकर हां-मे-हां मिला दी, मुदा दिमाग रोकि लैत अछि। कोसी क सीने पर अंगद क पैर क भांति जमाउल गेल लोहा-कांक्रिट क विशालकाय पाया सेहो हमरा भरोस नहि दिया पाबि रहल अछि। अभियंता क दावा अछि जे इ पुल कोसी क 15 लाख क्यूसेक पानी कए बर्दाश्त करि सकत। चूंकि पिछला 20-30 साल मे कोसी मे इएबा पानी कहियो नहि आयल, एहि लेल हुनकर गप मानि लैत छी जे एहि पुल कए पानी स कोनो समस्या नहि होएत। कोसी लाख यत्न करि लिये, पुल ओकर आंचर नहि छोडत आ टिकल रहत। मुदा जखन हमर मन मे सवाल उठैत अछि जे अगर कोसी इ पुल कए छोडि देलक, त ? एहि सवाल क जवाब अभियंता लग नहि अछि। हालांकि ओ सुस्त स्वर मे कहैत छथि एहन आब आसान नहि। मुदा जे कुसहा क कटाव कए देखने अछि, जे कोसी क तलहटी कए नपने अछि ओकर कहब अछि – “कोसी त आब धारा बदल कए रहत।” ओहन हालत मे पुल त ठार रहत, मुदा ओकर प्रासंगिकता नहि बचत। हम इ पता लगेबाक कोशिश कैल जे की कोसी महासेतु क पीपीआर या डीपीआर कए तैयार करबा काल महान अभियंता सब एहि पहलू पर विचार केने छलाह। जवाब नहि भेटल। दरअसल, पुल क डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनेबाक दौरान एहि पहलू कए साफ तौर पर नजरअंदाज करि देल गेल जे नदी धारा बदलैत रहल अछि आ आगू सेहो बदलि सकैत अछि। गौरतलब अछि जे जखन कोसी महापरियोजना कए स्वीकृति भेटल छल, तखन कोनो इंजीनियर या सलाहकार सरकार क सामने इ सवाल नहि उठेलक। आब जखनकि पुल पर 400 करोड़ टका खर्च भ चुकल अछि, त भला के एहन अटपटा सवाल पूछत। ओ तखन जखन पूरा इलाका पुल गान मे मस्त अछि। पुल क संगहि पूर्णिया स दरभंगा तक चारि लेन सड़क आ रेलवे ट्रैक क निर्माण मे जे राशि खर्च भेल अछि या हेबाक अछि ओकरा जोडि त बजट हजार करोड़ तक पहुंच जाइत अछि। नीक रहति अगर योजना क डीपीआर मे कोसी क धारा परिवर्तन पर सेहो विचार करि लेल जाइते। इ काज नहि भ सकल। संगहि पुलक एप्रोच पुल सेहो कम करि देल गेल, एहन मे आब एहि परियोजना क सार्थकता कोसी क रहमो-करम पर निर्भर करत। आउ हम सब मिलकए कोसी माई स गुहार करि जे ओ अपन बाट नहि बदलथि। नैहर जेबाक जिद छोडि दैथि। साठ वर्षों स दू हिस्‍सा मे विभाजित मिथिला कए फेर स एक करि दथि।

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      2 Comments

      Anand kumar jha
      Posted September 12, 2011 at 5:50 AM

      khushike ke vaat aichi…
      Reply
      रंजीत/ Ranjit
      Posted September 12, 2011 at 3:29 PM

      इ-समाद पर मेरे ब्लाग से रचना चुरा कर उसका मैथिली अनुवाद छपा गया है. मेरा नाम तो दिया गया है लेकिन मेरे ब्लाग का जिक्र कहीं नहीं है. ओरिजनल पोस्ट के लिए क्लिक करें. http://koshimani.blogspot.com/2011/09/blog-post_11.html

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