मैथिली साहित्य क संग इ अजीब विडंबना रहल अछि जे एकरा अधिकतर वर्णसंकर साहित्यकार भेटल। अनुमानतः 90% मैथिली साहित्यकार सिर्फ मैथिली मे एहि लेल लिखैत छथि किया जे हुनका हिंदी नकारि देने अछि। हम दू या दू स बेसी भाषा मे एकहि लेखक द्वारा लिखबाक विरोधी नहि छी, मुदा आइ धरि हमरा इ बुझबा मे नहि आयल अछि जे एकहि टा रचना दू या दू स बेसी भाषा मे कोना मौलिक भ सकैत अछि। वैद्दनाथ मिश्र “यात्री” उर्फ बाबा नागार्जुन द्वारा शुरुआत कैल गेल इ वर्णसंकरता आइ मैथिली मे जडि जमा चुकल अछि।
मायानंद मिश्र, गंगेश गुंजन, उषा किरण खान, तारानंद वियोगी, विभा रानी, श्रीधरम, सत्येनद्र झा, आओर न जानि कतेक साहित्यकार एहि कोटि मे आबि जा रहल छथि। सबस दुखद पहलू इ अछि जे एहि तरह क साहित्यकार अकादेमी आओर संस्था स पुरस्कृत होइत रहला अछि। फलतः जनमानस मे न त एहि तरह क साहित्यकार क प्रति आदर होइत अछि आओर नहि पुरस्कार देनिहार क प्रति। न जानि केतबा भुलक्कड़ मैथिली क साहित्यकार होइत अछि जे दिन-राति गीता त पढ़त मुदा कृष्ण क इ वाक्य बिसरि जाइत अछि जे वर्णसंकरता स कुल, परिवार, समाज सब नष्ट भ जाइत अछि है— आओर हम एहि मे इ जोडए चाहैत छी जे जखन कुल, परिवार, समाज नष्ट भ जाएत त भाषा क नष्ट होएब त निश्चित अछि ( जीव वैज्ञानिक वर्ण संकरता कए एहि स अलग राखबाक अनुरोध) ।
इ कहबा मे कोनो हर्ज नहि जे वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” उर्फ बाबा नागार्जुन कए मैथिली साहित्य मे व्याप्त एहि साहित्यिक संकरता लेल किछु हद तक जिम्मेदार ठहराउल जा सकैत अछि। ओना “यात्री“ जी क दोष एहि ल कए कम भ जाइत अछि जे ओ इ स्वीकारने छथि जे “बलचनमा“ ओ मूलतः मैथिली मे लिखने छथि ( संदर्भ— यात्री समग्र, राजकमल प्रकाशन) मुदा हिन्दी मे प्रकाशित “बलचनमा“ मे कतहू ओ इ नहि लिख सकलाह जे इ मैथिली स अनूदित अछि (एहि ठाम इ कहब अनुचित नहि होएत जे मूल मैथिली बलचनमा मिथिला सांस्कृतिक परिषद् , कलकत्ता स फरबरी, 1967 मे प्रकाशित भेल छल) । संगहि मैथिली क हुनकर “नवतुरिया“ आओर हिन्दी क “नई पौध“ एकहि अछि आ दूनू भाषा मे एकरा मौलिक कहल गेल अछि! कईटा आलोचक त एतबा धरि कहि चुकलाह अछि जे यात्री क मैथिली मे साहित्य अकादेमी पुरस्कृत पुस्तक “पत्रहीन नग्न गाछ“ क कईटा कविता हिन्दी मे सेहो अछि। “यात्री“ क बाद एहि परंपरा कए गति भेटल आ मायानंद मिश्र एहि संकरता कए सबस पैघ व्यापारी बनि गेलाह। मैथिली मे 1988 मे साहित्य अकादेमी पुरस्कार मायानंद क “मंत्रपुत्र“ कए भेटल आओर 1989 मे इ राजकमल प्रकाशन स हिंदी क मौलिक पुस्तक क रूप मे प्रकाशित भेल। उक्त पुस्तक मैथिली क मौलिक पुस्तक नहि अछि एकर पुष्टि एहि गप स होइत अछि जे इ पुस्तक अपन सिरीज क दोसर पुस्तक अछि आओर केवल इ दोसर पुस्तक मैथिली मे अछि। शेष तीनटा पुस्तक क्रम स पिहल—”प्रथमं शैल पुत्री च“, तेसर—”पुरोहित“ आओर चारित “स्त्रीधन“ हिंदी मे अछि। लगैत अछि केवल पुरस्कार लेबा लेल माया बाबू एकरा मैथिली मे अनुवाद करि छपबा लेलथिस- इ त अहां सब कए बुझले होएत जे माया बाबू कए मैथिली अनुवाद पुरस्कार नहि बल्कि मैथिली क लेल मूल पुरस्कार भेटल छल ( एहि ठाम इ उल्लेख करब गलत नहि होएत जे एहि लेल पुरस्कार देनिहार सेहो बराबर कए जिम्मेदार छथि)। मंत्रपुत्र हिंदी क मौलिक पुस्तक अछि, इ कलकत्ता स प्रकाशित हिंदी क पत्रिका स्वर-सामरथ स सेहो ज्ञात होइत अछि। जिज्ञासु एकरा राष्ट्रीय पुस्तकालय स प्राप्त करि सकैत छी। ( अंकक बारे मे कहब कठिन अछि किया जे 8-10 अंक प्रकाशित भेलाक बाद इ पत्रिका बंद भ गेल) ।
एहि घृणित व्यापार क रानी हम उषा किरण खान कए कहि सकैत छीयेन। पहिने त ओ 1995 मे “हसीना मंजिल“ नामक उपन्यास कए प्रकाशन मंच स मैथिली मे प्रकाशित करबेलथि फेर एहि पुस्तक कए मूल हिंदी क रूप मे वाणी प्रकाशन स 2008 मे प्रकाशित करबा लेलथि। एकर बाद सेहो मन नहि भरलेन त दिसंबर, 2007 मे प्रकाशन मंच स मूल मैथिली मे “भामती“ नामक उपन्यास प्रकाशित करा “हसीना मंजिल“ क तरह एकरा 2010 मे मूल हिंदी क उपन्यास क रूप मे बाजार मे राखि देलथि। आओर एहि “भामती“ कए वर्ष 2010 लेल मैथिली क मौलिक पुस्तक क रूप मे साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटल। एहि सूची मे अगिला नाम तारानंद वियोगी क अछि ओ अपन हिंदी बाल-कथा पुस्तक “यह पाया तो क्या पाया“ 2005 मे प्रकाशित करेलथि ( देखू हुनके मैथिली आलोचना क पुस्तक “कर्मधारय“ क फ्लैप) आओर फेर 2008 मे ओकरा मैथिली मे अनुवाद करि वर्ष 2010 क लेल प्रथम मैथिली बाल साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त करि लेलथि। एहि कड़ी मे किछु आओर नाम सेहो अछि जेना— विभा रानी द्वारा लिखल मैथिली कथा “बुच्ची दाइ“ अक्टू‘ दिसंब्र 2006 मे मैथिली त्रैमासिक पत्रिका घर-बाहर मे छपल आओर यैह मूल हिन्दी कहानी क रूप मे नवनीत फर-2007 मे “यूँ ही बुल्ली दाइ“ कए नाम स प्रकाशित भेल। एनबीटी द्वारा 2007 मे प्रकाशित मैथिली कथा संग्रह “देसिल बयना” ( संपादक— तारानंद वियोगी)मे श्रीधरम क मूल मैथिली कथा ब्रह्मन्याय आओर कथादेश मे छपल श्रीधरम क मूल हिन्दी कहानी नव (जातक कथा),दूनू एकहि छी।
एकर अलावा आओर कईटा नाम अछि जे एहि व्यवसाय मे लिप्त छथि आ हम हुनकर तहकीकात किर रहल छी, जेना जेना नव नाम सामने आउत दुनिया कए हम बतायब। सबस पैघ गप इ अछि जे एहि व्वसाय मे लिप्त अधिकतर लेखक जीवित छथि, हुनका स निवेदन अछि जे ओ अपन पाठक कए सूचित करथि जे उक्त पुस्तक कौन भाषा मे मौलिक अछि। अगर ओ मैथिली मे लेखन कए लाजक विषय बुझैत छथि त इ सेहो मैथिली क पाठक कए बतेबाक चाही आओर भविष्य मे मैथिली भाषा मे लेखन नहि करबाक घोषणा करबाक चाही।
साभार: http://ashantprashant.blogspot.com/
नोट : एहि आलेख स संबंधित दस्तावेज आ बहस फेसबुक पर सेहो देखल जा सकैत अछि।
आशीष अनचिन्हार
फेसबुकपर मूल बहससँ बात एम्हर-ओम्हर जाए लागल छल, मूल मुद्दापर सभकेँ एकमत हेबाक चाही।
जवाब देंहटाएंविनित जी इ स्पट कैल जाए जे इ मूल आलेख अछि या अनुदित
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