:- फजलुर रहमान हासमी-:
हे भाइ
हमरा जुनि मारह...
तों हमरा
दोसर जाति
दोसर धर्म्मक बुझि रहल छह...
मुदा हम छी
तोरे भ्राता
अग्रज वा अवरज!
हमरा सभकें एके माता
नहि मारह
गैर जानि कs
संसारक दृष्टिमे
तों 'पार्थ'
आओर
हम 'राधेय' बनल छी
मुदा 'पृथा' जानि रहल छी
हृदय कानि रहल अछि
चुप अछि
मजबूरी सं
बेबसी सं
हे भाइ
हमरा नहि मारह...
{फजलुर रहमान हासमी मैथिली साहित्यक प्रथम मुसलमान कवि छथि जे अपन मातृभाषाक अनुरागके कविताक माध्यम सं चित्रित कयलनि अछि. कविता हमरा नीक लागल तं अहां सभक लेल एहिठाम राखि रहल छी.}
सौजन्य: तिलकोर
सौजन्य: तिलकोर
हमर ईमेल:-hellomithilaa@gmail.com
बहुत बढियाँ लागल | बेर - बेर अहंक पढ़ब चाहब | ईद-ए-मिलाद व होली के ढेर सारा शुभकामना !
जवाब देंहटाएंNow your blog is looking very beautiful
जवाब देंहटाएं