एहि बेर के लोकसभा चुनाव सं पहिने उड़ल वाला बड़का-बड़का दिग्गज के जमीन आबि गेलाह. लोक हुनका सीखय लेल मजबूर कs देलखिन्ह जे मंत्री बनु... केंद्र के राजनीति करु.. बड़का-बड़का हाकुं मुदा टोला-मोहल्ला मे रहय वाला...गाम घर के लोक के बिसरबय त लोक अहुं के बिसरा देत. अहां के ई सोचय पड़त की अहां पूरा क्षेत्र के प्रतिनिधि छी.. कोनो खास जाति...धर्म आ समुदाय के नहिं. अहां के सभ के ख्याल राखय पड़त. लोकतंत्र मे एकोटा लोक के नाराज करनाय भारी पड़ि सकैत अछि. लोकतंत्र मे सिर्फ आश्वासन सं काज नहिं चलैत अछि. किछ ठोस कs क दिखाबय पड़ैत अछि. लोक के लगबाक चाही जे किछ भs रहल अछि. एहन नहिं जे पांच साल अन्हार आओर चुनाव के समय इजोत. काज किछ न किछ पांचों साल चलैत रहबाक चाही. विकास के काज मे गाम-घरके लोक के भागीदारी होबाक चाही. जेहि सं सभ लोक के ओहि पर नजर होए. ई नहिं जे सिर्फ मंत्री जी के दरबार मे हाजिरी लगाबय वाला के भागीदारी होए. लोकतंत्र मे सभ लोक के जोड़ल जाए. सभ के संग लs क चलल जाए.
ओ त लालू प्रसाद यादव जी दु ठाम सं ठाड़ छलाह ताही लेल इज्जत बाचि गेलन्हि. नहिं त रामविलास पासवान जका इहो अहि बेर दिल्ली नहिं जा पैताह. मो. अली अशरफ फातमी... डॉ शकील अहमद... कांति सिंह... रघुनाथ झा... मो. तस्लीमुद्दीन...जयप्रकाश नारायण यादव आओर अखिलेश प्रसाद सिंह
सभ चित्त भs गेलाह. आब हिनका सभके आत्म मंथन करबाक जरूरत छनि जे पिछड़ल बिहारके कि चाही? लोक के हुनका सं कि-कि उम्मीद छलन्हि? लोक के उम्मीद पर ओ कतेक खरा साबित भेलाह? सांसद... मंत्री बनलाह के बाद अपन इलाका के लोक सं कतेक सम्पर्क मे रहलाह? सभ सं सम्पर्क मे रहलाह आ सिर्फ किछ खास वर्ग के लोक के? सभ पर विचार करय पड़तन्हि.
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