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गब्बर केर इंसाफ...

देश मे चारु कात हाहाकार मचल रहैत अछि. लोक महंगाई... हिंसा... लूटपाट... रिश्वत... अफसरशाही... मिलावटखोरी... अराजकता... अव्यवस्था... घोटाला आओर भ्रष्टाचार सं परेशान रहैत अछि. त्राहि-त्राहि करैत रहैत अछि.

एहि संकट... दुख के कोनो हल नहि दिखय छनि. अंधेरगर्दी सं निकलय के कोनो रास्ता नहि दिखाए छनि. एहि सभ सं तंग आबि एकटा बैसार कएल जाएत अछि.

बैसार मे फैसला होएत अछि जे सभ लोक के गब्बर सिंह के पास चलिsक फरियाद करबाक चाही. एकटा गब्बरे सिंह एहन छैथि जिनकर धाक सभ ठाम चलय छनि...आओर लोक हुनकर कहल के टालए के हिम्मत नहि करि सकैत अछि.

गब्बर सिंह आब ओ पुरनका गब्बर सिंह नहि रहि गेल छल. समय- काल के अनुसार हुनकर चोला बदलि गेल छल. एहि उम्र मे अएला के बाद गब्बर के ज्ञानक प्राप्ति भ गेल छलन्हि आओर ओ खुद देश...समाजक एहि हाल सं दुखि छलाह.

मुदा ओ खुद पहल नहि करय चाहय छलाह. ओ चाहय छलाह जे दू-चारिटा लोक हुनका ठाम आबि एहि मुद्दा के उठा सुलझाबय के रिक्वेस्ट करथिन्ह त ओ किछ ठोस कदम उठाबय के कोशिश करथिन्ह.

खुद आगां बढला सं ओ महत्व नहि रहि जाएत अछि. एहि लेल ओ अपन पू्र्व डकैत जिनका सेहो गब्बर जका ज्ञानक प्राप्त भ गेल छलन्हि...किछ चेला सभ के ... शिष्य सभ के सभ ठाम खेराs देने छलखिन्ह.

गब्बर के कार्यकर्ता सभ अपन-अपन मुहिम मे लागि गेलाह. मिशन के सफलता सेहो हाथ लागल. तंग-परेशान लोक सभ गब्बर सिंह के दरबार मे गुहार लगाबय लेल तैयार भ गेलाह.

ज्ञानप्राप्ति के बाद गब्बर सेहो रामगढ़ के जंगल छोड़ि इंद्रप्रस्थक भव्य सुरक्षित कोठी मे रहय लागल छलाह. एहि ठाम दरबार लागैत छल. लोक सभ के दुख-दर्द दूर करय के कोशिश कएल जाएत छल.
एतबा होएतहुं गब्बर सिंह बड़ दिन सं अपना के साइडलाइन जकां सेहो महसूस करैत छलाह. सक्रिय राजनीति सं अपना के दूर पाबय छलाह. ओ चाहय छलाह जे सत्ता हाथ मे नहि रहितौं किंगमेकर के भूमिका मे त रहबाके चाही.

आओर ई त मन मांगल मुराद जकां छल. लोक सभ के परेशानी दूर करय के नाम पर अपना के फेर सं चमकाबय के. अपन धाक जमाबय के. लोक के सामने गॉडफादर जकां बनय के.

तय दिन त्रस्त लोक के प्रतिनिधि सभ गब्बर के दरबार मे हाजिर भेलाह. अपन दरबार मे आण जनता के ... विवश लोक के... दुखी... परेशान लोक के नुमाइंदा सभ के आबय के खबर सुनि गब्बर भीतरे-भीतर खूब प्रसन्न भेलाह.

गब्बर सिंह दरबाह मे हाजिर भेलखिन्ह. लोक सभ दुखी मन सं अपन व्यथाक बखान करखिन्ह. कोनो प्रतिनिधि हिंसा...लूटपाट...कायदा-कानून के मुद्दा उठौलखिन्ह त कोनो प्रतिनिधि महंगाई...रिश्वत...घोटाला आओर भ्रष्टाचार के.

ई सभ सुनतहि गब्बर सिंह तमसा गेलाह आओर जोर सं चिल्लैलाह... आएं... अहां सभ ई की कहि रहल छी. ई सभ करयवाला कतेक लोक अछि? घोटाला... भ्रष्टाचार करय वाला कतेक लोक अछि ?

स्विस बैंक मे पाए-टका जमा करय वाला कतेक लोक अछि? लाइसेंस फी के नाम पर टका बनाबए वाला कतेक लोक अछि? कतेक लोक अछि? आएं... बताउ... चुप किएक छी अहां सभ?

कतेक लोक अछि? दूटा... चारिटा... दसटा... सयटा... हजारटा... कतेक अछि? मुदा अहां सभ कतेक छी...करोड़ों. ई कतेक शर्म के गप अछि जे मुट्ठी भर लोक अहां सभ के मूर्ख बनौने अछि.

अहां सभ के बुरबक बना पाए बना रहल अछि आओर अहां सभ हाथ-पर -हाथ धरि बैसल छी. कतेक दिन तक ऐना चलत? सभ किछ ऊपरे वाला पर नहि छोड़ल जा सकैत अछि. किछ अहुंके करय पड़त.
धिक्कार अछि अहां सभ पर... ककरा सं डरय छी अहां सभ? किएक डरय छी अहां सभ? कि अहां सभ सेहो ओहि मे भागीदार छी जे दुबकल छी. अगर नहि त दबल नहि रहुं. आगां आउ.

डरु नहि... किएक त... जे डरि गेल समझु मरि गेल. हिम्मत जुटाउ अपना मे अहां. हम छी नहि. हमरा रहैत अहां सभ के डरय के कोनो जरूरत नहि अछि. आबहुं जागु... अखनो नहि जागब त सुतले रहि जाएब.

एकरा सभ के उठा फेंकु...कुर्सी सं उठा भगाउ. अगर ओना नहि मानैत अछि त आंदोलन करु...सत्याग्रह करु...नहि त सरकार के चुनाव के लेल विवश करि दिअ. लोकतंत्र मे वोट अहांके बड़का हथियार अछि.

गब्बर के जोश भरल एहि भाषण के सुनि लोक सभ सेहो जोश मे आबि गेलाह. लोक सभ के अंग -अंग फरकय लगलन्हि. गब्बर सिंह जिन्दाबाद के नारा लगाबैत दरबार सं बाहर निकलय लगलाह.

एम्हर गब्बर एक चुटकी खैनी मुंह मे दबा अपन पाकल मोछ के सहलाबय लगलाह. ई देखि सांभा के आंखि मे सेहो चमकि आबि गेल.
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