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कि होएत मकई के ???

मकई के निर्यात पर लागल रोक के बाद बिहारक राजनीति गरमा गेल अछि. आब ई मुद्दा केन्द्र आओर राज्य लड़ाई के विषय बनि गेल अछि. मुख्यमंत्री जी एहि मुद्दा पर प्रधानमंत्री जी के पहिनहि पत्र लिखि चुकल छथिन्ह. अगर पूरा देश में एहि पर रोक लागल रहैत त कोनो बात नहि छल. मुदा एहि पर सिर्फ उत्तर भारते मे रोक लागल अछि. दक्षिण के राज्य मे एहि पर रोक नहि अछि. आब एकटा नीक खबर ई आबि रहल अछि जे केन्द्र सरकार बिहारक मकई के सवा छह सय रुपए क्विंटल पर खरीद सकैत अछि. एहि बारे में अखन फैसला नहि भेल अछि. मुदा एहि पर विचार भs रहल अछि. अगर एहि तरहक कोनो फैसला होएत अछि तs देर सं सही ओ सही फैसला होएत. हजारों किसानक लाखों टन मकई एम्हर-ओम्हर पड़ल अछि... बर्बाद भs रहल अछि. कइटा किसान के सामने कंगाल होए के समस्या पैदा भs गेल छै. सरकार के जल्दीए एहि पर गंभीरता सं विचार करय के जरूरत छै. निर्यात पर रोक लगला सं मकई के दाम काफी कम भs गेल अछि. किसान के आगां लागत निकालय के परेशानी खड़ा भ गेल अछि. फायदा नहिं होए...नहि होए... केहुना लागत निकलि जाए. खाद... पानि... बिया के पाई निकलि जाए. हालत एहन भs गेल अछि जे जेहि दाम पर सरकार अनाज के खरीद करय छै... ओहि न्यूनतम समर्थन मूल्य... एमएसपी के दाम सेहो कम भ गेल अछि. पहिने मकई के एमएसपी साढ़े सात सय रुपए क्विंटल छल ओ घटि कए पांच सय रुपए पर आबि गेल अछि. आब अगर सवा छ सय पर खरीदय के फैसला होय छै त कहि सकय छी भागल भूत के लंगोटीए सही. चलु जे किछ मिलि जाय. मुदा मिलय तखन नहि. देखिऔ कि फैसला होएत अछि.

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