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जय गुरुदेव


दफ्तर सं घर लेल निकलहिं वाला छलहुं कि याशीजी के फोन आयल गुरूजी अखन राति में नोएडा आ रहल छथिन्ह...हमहुं हुनका सं मिलय लेल विदा भ गेलंहु...ओहिठाम पहिने सं कइटा जान पहचान वाला लोक मौजूद छलाह...गुरुजी श्री श्री रविशंकर में गजब के आकर्षण छैन...हुनकर चेहरा पर सदिखन मुस्कान बनल रहैत छैन...हुनका सं मिलतहिं...हनका सम्पर्क में अबतहिं लोक मुस्कनाय सीख जाइत अछि...हुनकर मुस्कुराहट लोक के अपना तरफ आकर्षिक तरय छै...आओर एक बेर जे हुनका सम्पर्क में आयल सदा के लेल हुनकर भ जाइत अछि...
गुरुजी सं मिलय के पहिल अवसर करीब 15 साल पहिने मिलल छल... तखन हम एनडीटीवी में छलहुं आओर विजय त्रिवेदी जी के एकटा आधा घंटाक विशेष कार्यक्रम के लेल हुनका सं भेंट भेल छल...तखन कार्यक्रम तैयार करय के क्रम में हुनका बारे में बहुत कुछ जानय समझय के मिलल..गुरुजी श्री श्री रविशंकर आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक छथिन्ह..आओर आर्ट ऑफ लिविंग दुनिया के सभस बड़का सामाजिक, आध्यात्मिक गैर सरकारी संस्था अई...आर्ट ऑफ लिविंग 1981 में शुरू कएल गेल..आई दुनिया के 140 देश में एकर केन्द्र अछि...हिनकर कहनाय छैन हंसो आओर हंसाओ...न फंसो न फंसाओ...
गुरुजी संयुक्त राष्ट्र, विश्व आर्थिक मंच सं लक सैकड़ों देशक संसद के संबोधित क चुकल छथिन्ह ...आतंक सं डरल दुनिया के प्रेम भाईचारा के संदेश द रहल छथिन्ह...आई काल्हि जे लोक में काम काज, पैसा, प्रमोशन, प्यार के लक तनाव बढ़ि रहल छै...हिनकर आर्ट ऑफ लिविंग में अयला के बाद हुनका ओहि सं छुटकारा मिलल अछि...ऑर्ट ऑफ लिविंग के तरफ सं कई तरहक कोर्स सेहो चलैत छै...युथ लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम, बेसिक कोर्स, एडवांस कोर्स, दिव्य समाज का निर्माण (डीएसएन), आर्ट ऑफ एक्सेल वर्कशॉप, यस कोर्स. एकर साथ गौशाला, ऑर्गेनिक फार्मिंग सेहो होइत अछि.. दिल्ली के पास ग्रेटर नोएडा में गौशाला बनल छै.
एक साल पहिने हमरो हिनकर बेसिक कोर्स करय के मौका मिलल...एहि कोर्स के एतेक बढ़िया सं तैयार कएल गेल छै से कि कहल जाउ...दोसरा के ई अनुभव कोर्स कएला के बादे भ सकैत अछि...एहि में आधुनिक आओर पुरातन आध्यात्मिक धरोहर के सम्मिश्रण अई...ऑर्ट ऑफ लिविंग ..जीने की कला...के मूल में छै..सांस लेबय के तरीका...अहां कहबय की सांसों लेबय के कोनो तरीका होइछ...अगर हमरा सांस लेबय नहिं आबय अ त जिंदा केना छी...ओना सांस लेनाय आओर तरीका सं सांस लेनाय दुनु में बड़ फर्क अछि...जेना जेना हमर उम्र बढ़य अ हम सांस लेबय के जे तरीका छै ओकरा स दूर भेल जाइत छी...अगर विश्वास नहिं होय अ त क क देख सकय छी...अहां पालथी मारि के बैठ जाउ...सीधा भ एकटा हाथ पेट पर आ दोसर ठेहुंन पर राखि लिय..जोर सं सांस लिय आओर छोडुं...अहां देखबय जे सांस लेला पर सीना फुलय छै आओर छोड़ला पर सुटकय छै...मुदा होबय ई चाहि जे सांस लेला पर पेट फुलबाक चाहि आओर छोड़ला पर सुटकबाक...अहां कोनो सुतल बच्चा के देखिओ...ओ जखन सांस लेत त पेट फुलैत अछि आओक छोड़ला पर सुटकैत अछि...अहां ओहिना बैठि कय आंखि बंद क अपन पुरा ध्यान सांस पर दिऔ...अहां देखबै जे सांस गला तक जाक बाहर निकलि जाइत अछि...हम सांस के पूरा उपयोग नहिं कए पाबैत छी..जखन कि आदमी जब जन्म लै अ त पहिल काम सांस लेनाय होइत अछि आओर जखन एहि दुनिया के छोड़ैत आ त आखिरी काम सांस छोड़नाय...जखन तक सांस चलय अ तखन त जिनगी चलय अ..सांस बंद जीवन बंद.

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